Cover Story

आखि़र कब तक?


 


2014 की तुलना में 2019 में भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को प्रचंड बहुमत मिला। और नरेंद्र मोदी लगातार दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने। इस बीच उनके अंध भक्त कहे जाने वाले समर्थक व गोदी मीडिया ने यह राग अलापना शुरू किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को आगे ले जाने की शुरूआत वहां से करेंगे जहां से लोकसभा चुनाव घोषित होने के बाद वह काम रूक गया था।
साथ ही दुनिया में देश का नाम और भी रोशन करेंगे। वहीं बड़ी और ऐतिहासिक जीत का आत्मविश्वास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर साफ झलक रहा था। इसी बीच भाजपा समर्थक मीडिया की ओर से यह खबर बेक्रिंग न्यूज की तरह चलाई गई कि लोकसभा चुनाव में मुसलमानों ने तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों से तंग आकर खूब बढ़ चढ़कर भाजपा को वोट इसलिए दिया क्योंकि उन्हें यह लग रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी उम्मीदों पर खरा उतरेंगे। इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश का मुसलमान तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों से आजिज़ आ चुके हैं, निराश है और मायूस है लेकिन यह नहीं माना जा सकता कि उसने भाजपा को इस हद तक वोट दिया कि उसने तीन सौ सीटों का आंकडा पार कर लिया। लेकिन भाजपा या उसके रणनीतिकारों के पास क्या इस बात का जवाब है कि विदेशी मीडिया ने अगर उनसे यह सवाल पूछ लिया कि देश का नेतृत्व कर रही भाजपा के पास जिसके खाते में तीन सौ से अधिक सीटें हैं, उसमें एक भी मुसलमान क्यों नहीं है? तो क्या भाजपा इस सच को ईमानदारी से कह सकेगी कि उसने तो एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया। यह बात मुसलमान भी अच्छी तरह से जानता है उसके बाद भी वह भाजपा को वोट देगा, जबकि देश का मुसलमान न सिर्फ भाजपा बल्कि संघ परिवार और तो और यहां तक कि नरेंद्र मोदी का वह इतिहास जहन में संजोए हुए है।
जब वे गुजरात दंगों के दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। बहरहाल दोबारा प्रधानमंत्री बन जाने के बाद नरेंद्र मोदी ने अपने एक बयान में कहा कि मुसलमानों का भरोसा जीतने की जरूरत है। साथ ही पिछले पांच साल में ईद के मौके पर मुसलमानों को बधाई न देने वाले प्र्र्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार ईद के अवसर पर उर्दू में ट्वीट कर मुसलमानों को मुबारकबाद दी। जाहिर सी बात है कि यह मुसलमानों को लुभाने का भाजपा का नया दांव था। जिसे और पुख्ता करने के लिए गोदी मीडिया ही नहीं बल्कि केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी से लेकर मौलाना महमूद मदनी और जफर सरेशवाला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुस्लिम प्रवक्ता बन कर भाजपा के रंग में रंगी मीडिया के साथ नरेंद्र मोदी को मुस्लिम मसीहा और मुस्लिम हितैशी साबित करने की होड़ लग गये। कहने को मोदी सरकार ने अल्पसंखक समुदाय के 5करोड़ बच्चों के लिए छात्रवृत्ति दिए जाने की घोशणा की लेकिन वहीं दूसरी ओर बकौल असदउवैसी के कि मोदी सरकार ने इस बार अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय के बजट में 80 करोड़ रूपए की कटौती कर दी। ऐसे में यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि मुसलमानों के लिए भी मोदी सरकार की नीति कांग्रेस की तरह हाथी के दांत की तरह दिखाने और खाने की कुछ और ही है।
जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश के मुसलमानों का विश्वास जीतने और भारत को न्यू इंडिया बनाने की बात करने का सवाल है तो इस पर अभी चर्चा शुरू ही हुई थी कि भाजपा शासित राज्य झारखंड के सरायकेला में भीड़तंत्र ने एक मुस्लिम युवा तबरेज अंसारी उर्फ सोनू को बिजली के खंबे से बांध कर इतना मारा कि इतना मारा के वह अदमरा हो गया जिसकी बाद में पुलिस हिरासत में मौत हो गई चर्चा तो यह भी है कि पुलिस ने उसे मार दिया। मालूम हो कि यह वही भाजपा शासित राज्य झारखंड है जहां पिछले साल मोदी सरकार के ही मंत्री जयंत सिन्हा ने मुसलमानों पर हमला करने वाले तथाकथित गौरक्षकों को जेल से रिहा होने के बाद सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया था। जिसको लेकर सारे देश में केंद्रीयमंत्री जयंत सिन्हा की आलोचना हुई थी, किन्तु अपने इस घिनौने कृत्य पर केंद्रीयमंत्री जयंत सिन्हा को कतई मलाल नहीं था और लगभग यही स्थिति मोदी सरकार की भी थी। बल्कि दोनों को इस पर गर्व जैसा महसूस हो रहा था। कहने का सार यह है कि जब अपने ही शासित राज्य में किसी केंद्रीय मंत्री द्वारा उपरोक्त कारनामे को अंजाम दिया जाए तो जाहिर सी बात है कि यह पार्टी के कैडर को ऐसा करने के लिए भाजपा की ओर से दिया एक संदेश है। मालूम हो कि इसी साल झारखंड के विधानसभा चुनाव होने है और इतिहास गवाह है कि भाजपा मतों के धु्रवीकरण करके ही चुनाव जीतने में विश्वास रखती है। यह फलसफा उसे काफी सुहाता है तो इसलिए सिर्फ झारखंड ही नहीं, बल्कि दूसरे भाजपा शासित राज्यों में मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में और अब मौजूदा कार्यकाल में भी वही तथाकथित गोरक्षकों की भी सड़कों पर हिंसा का तांडव मचाती हुई नजर आ रही है। क्या इस बात से इंकार किया जा सकता है कि हिंसा पर उतारू इस समूह में भाजपा के समर्थक नहीं होंगे, ऐसा भी नहीं है कि इसमें से किसी एक ने भाजपा को वोट भी नहीं दिया हो। सारा देश हैरान है कि क्या किसी व्यक्ति को मोटर साइकिल चोरी के आरोप में इतना मारा जाता है कि उसकी मौत हो जाती है। वहीं अधिकांश लोगों का यह मानना है कि तबरेज अंसारी को चोरी के आरोप के बहाने सिर्फ इस लिए मारा गया क्योंकि वह मुसलमान था। क्या इस भीड़ को हम भारतीय लोकतंत्र का हिस्सा मान सकते हैं? जवाब है नहीं, तो फिर इस भीड़तंत्र को रोकने के लिए आखिर क्यों नहीं सख्त कदम उठाए जा रहे हैं? वैसे तो भीड़ की हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट ने बकायदा एक गाइडलाइन बनाई है। पिछले साल जब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था तब तक 18 महीने में 66 बार भीड़ ने समुदाय विशेष पर हमला किया था और 33 लोगों की हत्या हो चुकी थी। इंडिया स्पेंड का यह आंकड़ा है। इसी की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा है कि भीड़ द्वारा हत्या के लिए सजा तय हो और संसद कानून बनाए. क्या संसद ने कानून बनाया है? क्या संसद को तुरंत इस पर कानून नहीं बनाना चाहिए था, सुप्रीम कोर्ट का आदेश तो जुलाई 2018 का है. सुप्रीम कोर्ट ने मॉब लिंचिंग रोकने के लिए दिशानिर्देश भी तय कर दिए हैं जिसे चार हफ्ते के भीतर कें और राज्य सरकारों को लागू करना है। राज्य सरकार हर जिले में पुलिस अधीक्षक या उससे ऊपर के अधिकारी को नोडल अफसर बनाए। इस नोडल अफसर की मदद के लिए हर जिले में एक डीएसपी की तैनाती की जाए जिनका काम होगा भीड़ द्वारा हत्या की स्थिति का आंकलन और नियंत्रण। हर जिले में टास्क फोर्स बने जो भीड़ के बारे में खुफिया जानकारी जुटाता रहे। राज्य सरकार ऐसे जिलों, सब डिविजनों और गांवों की पहचान करे। जहां पिछले पांच साल में भीड़ की हिंसा का अतीत रहा है। ऐसे जिलों के नोडल अफसरों के लिए राज्य सरकार दिशा निर्देश जारी करे. उन इलाकों में एस एच ओ स्तर का पुलिस अधिकारी विशेष रूप से सतर्क रहे। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि लिंचिंग के खिलाफ केंद्र और राज्य सरकार रेडियो और टेलिविजन और मीडिया के अन्य माध्यमों के जरिए इस बात का व्यापक प्रचार प्रसार करे, गृह विभाग और पुलिस विभाग की वेबसाइट पर इसका प्रचार किया जाए कि हत्यारी भीड़ में शामिल होने पर बेहद सख्त सजा मिलेगी. क्या ऐसा प्रचार प्रसार आपको दिख रहा है?
वहीं इधर अमेरिका की एक रिपोर्ट ने भारत में अल्पसंख्कों पर हो रहे हमलों पर अपनी चिंता व्यक्त की। उम्मीद के मुताबिक जिसे मोदी सरकार से सिरे से खारिज करने में देरी नहीं की। जबकि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के एक महीने के अंदर ही देश के विभन्न हिस्सों में भीड़तंत्र द्वारा मुस्लिम युवाओं पर हमले तेज हो गए है। हमलों से जुड़े सभी मामलों में यही खबरें आ रही हैं कि लोगों द्वारा मुस्लिम युवाओं को जिसमें अधिकांश दाढ़ी टोपी वाले ही थे, उनसे भीड़तंत्र द्वारा जबरन जय श्रीराम और जय हनुमान के नारे लगवाए गए और न लगाने पर उन्हें बुरी तरह से मारा गया। राम और हनुमान तो आस्था के प्रतीक है लेकिन विडंबना यह है कि देश में भाजपा का शासन स्थापित होने के बाद तो राम और हनुमान से संबंधित नारे धार्मिक न हो कर भाजपा की राजनीति का हिस्सा होने के साथ-साथ मुसलमानों के खिलाफ हमला करने का हथियार बनते जा रहे है। जानकारों के मुताबिक भाजपा ने बहुत चतुराई से चुनाव जीतने की रणनीति में बदलाव करते हुए राजनीति के ध्रुवीकरण के प्रचार-प्रसार में बहुत अधिक जोर दिया है। यही कारण है कि देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को खंडित करने के लिए भाजपा ने हर वह काम किया जो उसने जरूरी समझा। यही कारण है कि आज भारतीय समाज न सिर्फ विभाजित हो चुका है बल्कि एक दूसरे के खिलाफ भी हो चुका है। और ऐसा करने के लिए भाजपा ने कभी राष्ट्रवाद के नाम पर, तो कभी आतंकवाद के नाम पर या फिर कभी हिन्दू हितों की रक्षा के नाम पर चुनावी ध्रुवीकरण की ऐसी सफल नीति बनाई कि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को ऐसी जीत हासिल हुई जिसकी कल्पना किसी राजनीति पंडित ने नहीं की थी। ऐसे में झारखंड का तबरेज अंसारी प्रकरण भाजपा की राजनीतिक अभियान का हिस्सा कहा जाए तो गलत नहीं होगा। ऐसा ही राजनीतिक अभियान देश के दूसरे हिस्सों में अंजाम इसलिए भी दिया जा रहा है कि क्योंकि अब तो भाजपा के पास आतंकवाद के आरोप के बावजूद प्रज्ञा ठाकुरजैसे लोकसभा का चुनाव जीत कर लोकतंत्र के मंदिर कहने जाने वाले यानी संसद तक में पहुंच गईं है।
फिर भाजपा के राजनीति अभियान को मुखर करने के लिए कभी गांधी की प्रतिमा को गोली मारने मारने वाले लोग है। गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे की मूर्ति लगाने वालों की भी कमी नहीं है। ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो बात-बात पर मुसलमानों को देश छोड़कर चले जाने, समुन्दर में डिबोए जाने की बातें करते हैं। ऐसा लगता है केंद्रीय पशुपालन मंत्री गिरिराज सिंह। जिन्हें अब अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए राज्य में और भी मुखर किए जाने की तैयारी है। वैसे तो तबरेज अंसारी की हत्या पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुख व्यक्त किया लेकिन साथ में अपने दुख व्यक्त करने की बेला में टुकडे-टुकडे करने वाले गैंग को याद कर एक तरह से तबरेज अंसारी के मामले की अनदेखी करने की कोशिश की। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने एक नारा दिया था कि मोदी है तो मुमकिन है लेकिन मोदी है तो मुमकिन हैं का यह नारा क्या मुसलमानों को बचाने वाला सार्थक नारा नहीं हो सकता? या फिर मोदी है तो मुमकिन हैं का भाजपाई नारा भीडतंत्र को मुसलमानों के खिलाफ हमला करने के लिए प्रोत्साहित करने वाला तो नहीं है।