Heart Attack और Heart Failure दोनों में होता है अंतर, यहां जानें
 

बीट हार्ट फेल्यॉर कैंपेन को मिले पॉजीटिव रिस्पॉन्स के बाद केरल की हेल्थ मिनिस्टर के.के. शैलजा का कहना है कि जल्द राज्य सरकार हॉस्पिटल्स में हार्ट फेल्यॉर ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल को सेकंडरी लेवल पर लेकर जाएगी। जैसे कैंसर ट्रीटमेंट के लिए एक हॉस्पिटल को फॉर्म्यूलेट किया गया है। शैलजा ने यह बात 'बीट हार्ट फेल्यॉर कैंपेन' के पैनल को इनॉग्रेट करते वक्त कही। शैलजा ने राज्य में बीट हार्ट फेल्यॉर के तहत एक साल के अंदर अधिक से अधिक सफलता हासिल करने का लक्ष्य रखा है।

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए शैलजा कहती हैं कि सही जानकारी का अभाव, बीमारी को शुरुआती चरण में ही ना पहचान पाना, टाइम पर सही ट्रीटमेंट नहीं मिल पाना जैसी दिक्कतों को दूर करने के लिए राज्य सरकार सरकारी हॉस्पिटल्स में जरूरी सुविधाएं और मैन पॉवर में बढ़ोतरी कर रही है। साथ ही लोगों के बीच स्वस्थ जीवन शैली और हेल्दी हैबिट्स के प्रति जागरूकता लाना दूसरा बड़ा चैलेंज है। इसके साथ ही राज्य सरकार बड़े स्तर पर मोटापे से जुड़ी समस्या का समाधान करने के लिए प्रयास कर रही है। ताकि केरल को एक स्वस्थ राज्य बनाया जा सके।


यहां जानें हार्ट फेल्यॉर और हार्ट अटैक में अंतर
हार्ट अटैक हार्ट मसल्स के एक सेग्मेंट की डेथ हो जाना या उनका नष्ट हो जाना होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हार्ट के इस हिस्से में किसी कारण से रक्त प्रवाह नहीं हो रहा होता है। ऐसा अक्सर तब होता है, जब किसी आर्टरी में ब्लड क्लॉट के कारण हार्ट के उस हिस्से में खून की सप्लाई बंद हो जाती है। जबकि हार्ट फेल्यॉर में हार्ट की मसल्स इतनी कमजोर और सख्त हो जाती है कि ठीक प्रकार से काम नहीं कर पाती हैं और इस स्थिति में हार्ट खून को उतनी मात्रा में पंप नहीं कर पाता है, जितनी मात्रा में हमारे शरीर को जरूरत होती है।

PAN-India Statistics के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 80 लाख से 1 करोड़ के बीच हार्ट फेल्यॉर के मरीज हैं। इनमें से 23 प्रतिशत लोग इस बीमारी की पहचान होने के एक साल के अंदर ही मृत्यु का शिकार हो जाते हैं। वहीं, हार्ट फेल्यॉर की मुख्य वजहों में कोरोनरी आर्टरी से संबंधित बीमारियां, हाइपरटेंशन, डायबिटीज मेलिटस, वेल्युलर हार्ट डिजीज और कॉनजेनिटल हार्ट डिजीज जैसे कारण शामिल होते हैं।


हार्ट फेल्यॉर के मुख्य लक्षण
- हार्ट फेल्यॉर होने पर सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। ऐसा लंग्स में फ्लूइड के जमा होने के कारण हो सकता है। इस कारण प्रभावित व्यक्ति को रोजमर्रा के कामों के दौरान भी सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। जैसे वॉक करते वक्त, सीढ़ियां चढ़ते वक्त।

- लेटते वक्त सांस लेने में दिक्कत होना और शरीर में ऑक्सीजन की कमी महसूस होना। एक आम लक्षण है। ऐसे में प्रभावित व्यक्ति को लेटते ही सांस लेने में दिक्कत होने लगती है और उन एक से अधिक तकिए यूज करने की जरूरत महसूस होती है।

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- हार्ट फेल्यॉर मतलब शरीर में ऑक्सीजन की कमी और ब्लड फ्लो का अधिक होना। ऐसे में टिश्यूज को एनर्जी के लिए ऑक्सीजन की बहुत जरूरत होती है, जो प्रॉपर मात्रा में नहीं मिल पाने के कारण बहुत अधिक थकान का अहसास होता है।

- पेट, ऐड़ी और पैरों में सूजन होना भी हार्ट फेल्यॉर का लक्षण हो सकता है। ऐसे में प्रभावित व्यक्ति को कपड़े और जूते टाइट महसूस हो सकते हैं। ऐसा बॉडी फ्लूइड का पैरों में जमा हो जाने के कारण होता है। इसी कारण ऐंकल और पेट पर भी सूजन आ सकती है।

- इन सभी लक्षणों के साथ ही हार्ट फेल्यॉर से प्रभावित व्यक्ति को भूख भी कम लगती है। ऐसा आंतों में फ्लूइड जमा होने के कारण हो सकता है, जिससे डाइजेशन पर असर पड़ता है और इस दौरान खाना खाते वक्त व्यक्ति खुद को बीमार महसूस कर सकता है।

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- हार्ट फेल्यॉर के दौरान अचानक से वजन बढ़ने लगता है और यह उस स्थिति में होता है, जब हार्ट फेल्यॉर की स्थिति काफी घातक होती है। इस दौरान प्रभावित व्यक्ति के शरीर का वजन एक सप्ताह में दो किलो तक बढ़ जाता है और ऐसा लगातार बनते फ्लूइड के कारण होता है।

- हार्ट फेल्यॉर के दौरान हर्ट कभी-कभी पंपिंग स्पीड को बहुत अधिक बढ़ा लेता है, ऐसा बॉडी में हुई ब्लड की कमी को पूरा करने के लिए करता है।

- हार्ट फेल्यॉर का यूरिन पास करने की फ्रिक्वेंसी से भी कनेक्शन होता है। क्योंकि हार्ट फेल्यॉर के दौरान घटा हुआ ब्लड किडनी में पहुंच जाता है, इस कारण प्रभावित व्यक्ति को जल्दी-जल्दी पेशाब आने की समस्या होती है।


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